हिमाचल का एससी-एसटी वर्ग उपेक्षा का शिकार हो रहा तो वहीं विकास के नाम पर सभी सरकारें छलावा कर रही है। ऐसे में जल्द ही सीएम से मुलाकात कर यह मामला उठाया जाएगा
चंबा, ( विनोद ): हिमाचल का अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति( एससी)(एसटी) वर्ग छलावे का शिकार हो रहा है। इसका खुलासा बीते पांच वर्षों में एससी-एसटी विकास योजना के तहत जारी बजट के आंकड़ें स्वयं करते हैं। पांच वर्षों में 5741 करोड़ रुपए का बजट पारित किया हुआ लेकिन बाद में इसमें से ज्यादातर पैसा डाईवर्ट कर दिया गया। स्टेट कोलेशन फॉर लेजिसलेशन ऑफ शेडयूलड कास्ट शेडयूलड ट्राइब्स के स्टेट समन्वयक डीपी चंद्रा ने बात कही।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार स्टेट के कुल बजट का 33 प्रतिशत बजट अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास पर खर्च करने का प्रावधान मौजूद है लेकिन बीत पांच वर्षों में इसके अनुरूप किसी भी सरकार ने बजट मुहैया नहीं करवाया। अफसोस की बात है कि स्टेट ने अपने कुल बजट से महज अढ़ाई से साढ़े 3 प्रतिशत बजट ही समाज के इन कमजोर वर्गों के विकास पर खर्च किया। शेष पैसे को डाइवर्ट कर दिया गया।
साल दर साल नजर दौड़ाई जाए तो 2018-19 में अनुसूचित जाति विकास परियोजना के तहत राज्य सरकार ने 1309 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया लेकिन इसमें से 75.87 करोड़ रुपए डाईवर्ट कर दिया गया। वर्ष 2019-20 में 1562 करोड़ रुपए का बजट रखा गया लेकिन बाद में 1165 करोड़ रुपए डाईवर्ट कर दिया। वर्ष 2020-21 में 1752 करोड़ का बजट रखा गया जिसमें से 791.04 करोड़ रुपए अन्य मद में डाईवर्ट कर दिया गया।
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वर्तमान सरकार ने पूर्व की सरकार का अनुसरण करते हुए 1118 करोड़ के बजट का प्रावधान किया लेकिन उसमें से महज 19 करोड़ रुपए की खर्च किए गए। चंद्रा ने कहा कि अगर राज्य की सरकारे अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वर्ग के हकों पर इस तरह से डाका डालती रहेंगी तो फिर यह कमजोर वर्ग कैसे दूसरे वर्गों के साथ कंधे से कंधा मिलाने में सक्षम हो सकेंगे।
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उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर संगठन ने समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री धनीराम शांडिल्य व जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी से मुलाकात करी तो उन्होंने भी इस पर हैरानी जताई। डीपी चंद्रा ने कहा कि इस मामले को लेकर जल्द ही संगठन मुख्यमंत्री से मुलाकात कर संविधान में मौजूद प्रावधान के अनुरूप बजट मुहैया करवाने की मांग करेगा।
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उन्होंने कहा कि अगर सरकारें इसी तरह से इन वर्गों के बजट को कम करती रहेंगी और मंजूर बजट में कटोती करेंगी तो फिर बेहतर है कि सरकारें खुद को इन वर्गों को हितेषी होने का ढोंग करना छोड़ दे।