Chamba News : रानी सुनैना की याद में चंबा का ऐतिहासिक सूही मेला धूमधाम से शुरू

Chamba's Suhi Fair

Chamba’s Suhi Fair : जिला चंबा का सूही मेला पारंपरिक विधि से वीरवार को शुरू हो गया। महिला प्रधान मेला जनभावना से जुड़ा है। रानी सुनैना का बलिदान याद करने के लिए यह मेला हर वर्ष आयोजित होता है।

चंबा, ( विनोद ): हिमाचल का जिला चंबा अपनी प्राचीन लोक संस्कृति व कला के लिए विश्व प्रसिद्ध(world famous) है। 21वीं सदी में भी यह जिला अपनी गौरवमयी प्राचीन लोक संस्कृति को उसके मौलिक स्वरूप में सहेजे हुए है। 

प्रजा की खातिर अपने जीवन का बलिदान(sacrifice) देने की बेहद कम मिशाले देखने को मिलती है। जिला चंबा के रानी सुनैना का नाम इस सूची में शामिल है जिसमें एक रानी ने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए खुद के जीवन का बलिदान दिया। यही वजह है कि सदियों पहले घटी बलिदान की इस गाथा आज भी चंबा जनपद(Chamba district) में दिलों में तरोताजा है। 

चैत्र नवरात्र में हर वर्ष चंबा रानी सुनैना की याद में सूही मेला आयोजित करता है। इस बार यह तीन दिवसीय महिला प्रधान मेला पहली बार जिला स्तरीय आयोजित हो रहा है। चंद माह पूर्व इस प्राचीन मेले को जिला स्तर दर्जा दिया गया। वीरवार का चंबा शहर के बीचों बीच मौजूद पिंक पैलेस से रानी सुनैना की मूर्ति को ढोल,नगाड़ों व बैंड-बाजे के साथ शोभायात्रा(procession) सूही मढ़ के लिए निकली। 

बड़ी संख्या में नगर वासियों, स्कूली बच्चों व प्रशासनिक अधिकारियों ने इसमें अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई। रानी सुनैना के बलिदान स्थल मलूणा से चंद दूरी पर मौजूद सूही मढ़ में यह शोभायात्रा पहुंची जहां यह मूर्ति सूही मंदिर में अगले तीन दिनों तक विराजित रहेगी। चंबा वासी इस मंदिर में पहुंच कर माता सुनैना के दर्शन करके आर्शिवाद लेंगे।

क्या है बलिदान गाथा

किंवदंती के अनुसार रियासत काल(princely period) माल में चंबा शहर में विकट पेयजल संकट पैदा हुआ। धर्म गुरूओं व राज पुरोहितों ने प्रजा को प्यास मरने से बचाने के लिए राज परिवार(Royal Family) के किसी सदस्य को बलिदान देने की बात कही। रानी सुनैना ने अपनी प्रजा की खातिर अपने प्राण न्यौछावर करने का फैसला लिया और इसके लिए शहर से चंद किलोमीटर की दूर पर मलूणा नामक जंगल में जिवंत समाधी लेने का फैसला लिया।

रानी सुनैना ने बलिदान स्थल(sacrificial place) पर पहुंचने से पूर्व आखिरी बार अपने शहर को जहां से देखा उस स्थान पर वर्तमान में सूही माता का मंदिर मौजूद है। मलूणा पहुंच कर रानी ने जीवंत समाधी ली। कहते हैं कि जैसे ही रानी ने समाधि ली तो उसके पास से ही जलधारा प्रवाहित हो उठी जिससे चंबा शहर पर मंडराया पेयजल संकट दूर हो गया। 

तब से रानी के इस बलिदान को चंबावासी हर वर्ष सूही मढ़ में सूही मेला आयोजित कर अपनी प्रिय रानी के बलिदान को याद करते है। रियासत काल में राज परिवार इस मेले को आयोजित करता रहा, बाद में नगर परिषद चंबा वर्षों तक इस मेले को आयोजित करती रही। चूंकि इस वर्ष यह मेला जिला स्तरीय दर्जा पा चुका है जिसके चलते अब जिला प्रशासन इस मेले को आयोजित कर रहा है।

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आज भी राज परिवार की कन्या मेला के शुभारंभ पर शोभायात्रा में शामिल होकर सूही मढ़ पहुंच कर माता सूही की पूजा अर्चना करती है जिसके बाद यह मेला तीन दिनों के लिए विधिवत रूप से शुरू हो जाता है। इस बार यह मेला 11 अप्रैल से 13 अप्रैल तक आयोजित हो रहा है। 

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चंबयाली घुरेहियों का विशेष महत्व

इस मेले के दौरान चंबयाली लोक गीत(Chambyali folk song) घुरेही विशेष महत्व रखता है। अगले तीन दिनों तक पूरा चंबा नगर लोक गीत घुरेहियों की स्वर लहरियों से गुजता रहेगा। इस दौरान मेले की अंतिम शाम को गाये जाने वाला लोकगीत शुक्रात ऐसा लोकगीत है जिस वर्ष में महज एक ही दिन गाया जाता है। यह पूरी तरह से रानी सुनैना के बलिदान की याद को चंबाजनपद की दिनों में जीवंत करने का कार्य करता है। यही वजह है कि चंबावासियों की आंखें आज भी शुक्रात गीत गाते समय नम हो जाती है।

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