नौकरी पेशा के अलावा सेवानिवृत टिकट पाने की कतार में शामिल
चंबा, ( रेखा शर्मा ): टिकटार्थियों की सूची दिन व दिन लंबी होती जा रही है। जिला चंबा की बात करे तो bjp व कांग्रेस के बीच ऐसे कई नाम है जो कि लंबे समय से संगठन में काम कर रहें हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इस समय सरकारी पदों पर कार्यरत हैं।
लोगों का कहना है कि रोचक बात यह है कि कुछ लोग अभी तक सरकारी सेवा के क्षेत्र में सक्रिय है बावजूद इसके वह खुद को समाज सेवा का नया ठेकेदार दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें है जबकि अपने फायदे-नुक्सान को देखते हुए उन्होंने अभी तक अपने पद से त्याग पत्र नहीं दिया है। उनकी यह मंशा इस बात को साफ कर देती है कि ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने लाभ को प्राथमिकता दिए हुए है।
जिला चंबा के तीन विधानसभा क्षेत्रों में यह खेल इन दिनों खूब खेला जा रहा है। कुछ लोग तो उच्च पदों से सेवानिवृत होकर खुद को समाज सेवक बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। जबकि कुर्सी में रहते हुए उन्होंने अपने लंबे सेवाकाल के दौरान जनहित के लिए क्या किया उससे हर कोई बाकिफ है।
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लोगों की इस बात को माने तो यह साफ होता है कि जब तक सत्ता की चाबी हाथ में नहीं आती है तब तक ऐसे लोग सरकारी जमाई बने रहेंगे और टिकट प्राप्त कर कहीं विजय हासिल करते है तो नौकरी की पेंशन के साथ जनप्रतिनिधि होने का वेतन भी प्राप्त करेंगे।
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लोगों की माने तो जो लोग इन दिनों खुद को सबसे बड़ा समाज सेवी बताने की होड़ में जुटे ऐसे लोगों का रिकार्ड खंगाला जाए तो पूर्व में हुए जनहित से जुडे़ किसी भी आंदोलन से उनका कोई लेना देना नहीं रहा होगा। किसी भी जनहित आंदोलन की उन्हेांने अगवाई तक नहीं की होगी। यहां तक कि अपने क्षेत्र की जनता के हितों की रक्षा व सुरक्षा करने के लिए किसी आंदोलन की भीड़ का हिस्सा तक नहीं बने होंगे।
ऐसे इक्का-दूक्का लोगों को छोड़ दे तो बाकी किसी ने ऐसा कोई तीर नहीं मारा है जिसके दम पर उन्हें क्षेत्र का नया जननायक माना जा सके। इतना जरूर है कि पैसे के दम पर ऐसे लोग कभी अपने जन्मदिन तो कभी किसी अन्य सामाजिक समारोह के माध्यम से लोगों की भीड़ जुटाने का प्रपंच रच रहें है।
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यही नहीं कुछ ने तो ऐसी फोज भी खड़ी कर रखी है जो कि प्रीपेड मोबाईल की भांति ऐसे लोगों को टिकट मिलने का रांग आलापते रहते हैं इसके लिए उन लोगों की एक की मंशा रहती है कि गाय जब तक दूध दे रही है तब तक जितना निकाल सकते हो तो निकाल लो।
ऐसे टिकट चाहवानों की बात करे तो उनमें इतनी हिम्मत तक नहीं है कि वह खुद को सार्वजनिक रूप से टिकटर्थी बता सके। क्योंकि वे इस बात को भलीभांति जानते हैं कि अगर ऐसा करना उनके लिए आर्थिक रूप से नुक्सानदायक साबित हो सकता है। यानी वह अभी तक खुद को जनहितेषी करार देने में खुद के लिए घाटे का सौदा पा रहें है।