धूमल के हाथों देते चुनावी कमान तो भाजपा को नहीं होता इतना नुक्सान

उपचुनावों में कांग्रेस के हाथों मिली हार से निराश भाजपाईयों को अब धूमल याद आए

चंबा, (विनोद): धूमल के हाथों देते कमान तो भाजपा को शायद न होता इतना नुक्सान। प्रदेश विधानसभा व लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के हाथों मिली करारी हार से निराश भाजपा समर्थक अब दबी जुबान में यह बात कहने लगे हैं। इन लोगों का यह भी कहना है कि वीरभद्र सिंह की गैरमौजूदगी में भी भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा के गृह राज्य में सत्ता पर काबित होते हुए भी भाजपा उपचुनाव में चारों खाने चित हो गई। 
निराश भाजपाईयों का कहना है कि वीरभद्र सिंह को सत्ता से बाहर करके भाजपा के हाथों फिर से सत्ता की कमान सौपने में सफलता प्राप्त कर चुके प्रो. प्रेम कुमार धूमल को पार्टी हाईकमान ने उपचुनावों में कोई बड़ी जिम्मेवारी क्यों नहीं सौंपी। शायद धूमल को कम आंकना ही पार्टी के लिए घातक और कांग्रेस के लिए संजीवनी बन गया।

आज भी पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता में धूमल की लोकप्रियता है बरकरार

इसमें कोई दोराय नहीं है कि प्रदेश का दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने अपनी जो पहचान बनाई है उसे आज भी पार्टी का कार्यकर्ता भूला नहीं है। धूमल की गिनती प्रदेश के उन मुख्यमंत्रियों की सूची में होती है जिसके कार्यकाल में अफसरशाही कभी सत्ता पर भारी नहीं रही। दूसरी तरफ जयराम की गिनती उन मुख्यमंत्रियों में होती है जिसे अफसरशाही के प्रभाव में रहते हुए कार्य करते हैं। 
इस बात में कितनी सच्चाई है इस बात को तो शायद ही कोई पता लगा पाए लेकिन इतना जरुर है कि भाजपा को उपचुनावों में जो करारी शिकस्त प्राप्त हुई है उससे भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता निराश हुआ है। निराशा की घड़ी में उन्हें फिर से धूमल की याद आई है। हो भी क्यों न धूमल ने अपने कार्यकाल में भाजपा के कैडर को जिस तरह से मजबूत किया उससे संगठन पर नेता कभी भारी नहीं पड़े। 
संगठन भले सत्ता पर भारी न पड़ा लेकिन वह सत्ता के आगे कमजोर या फिर बौना भी नजर नहीं आया। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बीते चार वर्षों के दौरान कई ऐसे घटनाक्रम देखने को मिले जब संगठन व सत्ता के बीच आपसी तालमेल की पोल खोलकर रख दी। धूमल आज भी संगठन के बड़े से लेकर पार्टी के आम कार्यकर्ता को जानते व पहचानते है लेकिन जयराम ठाकुर में यह कमी अभी भी देखने को मिलती है।

टिकट कटने पर एक नेता ने खुद को धूमल का समर्थक होने का खामियाजा भुगतने की बात कही थी

इस बार के विधानसभा उपचुनाव में जब संभावित व्यक्ति का टिकट कटा तो उसने इसके लिए खुद को धूमल के गुट होने का परिणाम बताया। यानी उसने अप्रत्यक्ष रूप से संदेश दे दिया था कि आज भी कुछ पार्टी के नेता धूमल से संबन्धत रखने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने में जुटे हुए है। ऐसे बागी नेताओं ने भाजपा के खेल को बिगाड़ने की काम किया। 
मुख्यमंत्री ने भी मंगलवार को चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पत्रकारवार्ता में इस बात को सरेआम माना की पार्टी के भीतर बस कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि कुछ लोग भले पार्टी के भीतर थे लेकिन वह सही मायने में पार्टी के साथ नहीं थे। उन्होंने तो ऐसे कुछ लोगों को लेकर सामने आई बातों के सच होने तक की बात कही। 
यानी कुल मिलाकर धूमल का जादू अभी भी कायम है। अगर ऐसा है तो भाजपा को यह बात अभी से समझ जानी चाहिए कि अगले वर्ष होने वाले प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपने मिशन रिपीट को कामयाब बनाना है तो एक बार फिर से प्रो. प्रेम कुमार धूमल के हाथों बड़ी जिम्मेवारी सौंपनी होगी वरना अपनाें को दरकिनार करने के चक्कर में भाजपा खुद की प्रदेश की सत्ता से दूर न हो जाए
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