शौक या हालात पहुंचा रहें जेल, कौन जिम्मेवार, पता लगाए सरकार
चंबा, ( विनोद कुमार ): जिला चंबा में बीते 24 घंटों के दौरान चरस तस्करी के तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए है। इन मामलों के माध्यम से 4 लोगों को पकड़ा गया है और इनके कुल 1 किलो 672 ग्राम चरस पकड़ी गई है। इन मामलों से एक बात तो साफ होती है कि जिला चंबा में पुलिस नशे का अवैध कारोबार करने वालों पर अपनी पैनी निगाह गड़ाए हुए है लेकिन दूसरी तरफ एक के बाद एक चरस का मामला दर्ज होना और ऐसे मामलों में युवाओं की सक्रिया सही मायने में सरकार व समाज के लिए चिंता का विषय है।
यह पहला मौका नहीं है जब बीते महज 24 घंटों के दौरान पुलिस ने अलग-अलग 3 मामलों को दर्ज करके चार लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाया हो, परंतु अफसोस की बात है कि अभी तक सरकार ने इस बात का पता लगाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है कि युवा आखिर क्यों नशे के कारोबार की तरफ आकर्षित हो रहें है।
हालांकि हर कोई इसे कम मेहनत व कम समय में अमीर बनने की ख्बाहिस का कारण बताएगा, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू देखना भी तो जरुरी है। जिला चंबा की चुराह घाटी में ही चरस पैदा होती है ऐसा तो हरगिज नहीं है। फिर ऐसी क्या वजह है कि चरस तस्करी से जुड़े मामलों की सबसे अधिक संख्या चुराह से ही रहती है।
एक सच्चाई यह भी है कि जिला चंबा की चुराह घाटी में गरीबी का आंकड़ा काफी अधिक है। आज 21वी सदी में भी दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो अपने मवेशियों के साथ एक ही कमरे में अपने परिवार के अन्य सदस्यों सहित जीवन यापन करने को मजबूर है।
प्राकृतिक संसाधनों की बात करें तो चुराह घाटी में जड़ी-बुटियों की भरमार है, लेकिन अफसोस की बात है कि उन्हें निकालने में पाबंदी लगी हुई है। जहां ऐसी पाबंदी नहीं है वहां सिर्फ परमीट धारक ही जड़ी-बुटियों को निकालने के लिए अधिकृत है। इस प्रकार की व्यव्स्था उन लोगों के लिए तकलीफदायक हो सकती है जो कि स्थानीय होने के बावजूद परमीट नहीं होने के कारण इस काम को अंजाम देने में खुद को असहाय पाते है।
जलविद्युत परियोजनाओं की दृष्टि से चुराह घाटी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन यहां स्थापित जलविद्युत का किन्हें लाभ मिला यह बात तो जगजाहिर है। रही सही कसर इन परियोजनाओं की वजह से बर्बाद हुई घासनियों व घराटों ने पूरी कर दी। लोग पशुपालन के काम को भी अब अंजाम देने से वंचित हो गए है।
इन तमाम बातों के बीच चुराह में रोजगार सृजन की दिशा में किसी भी सरकार ने विशेष प्रयास नहीं किए। भले कुछ लोग मनरेगा को ढाल बनाकर सरकार को बचाने का प्रयास करें, लेकिन मनरेगा में कैसे काम मिलता है, रोजगार के नाम पर कितना पैसा मस्ट्रोल में शामिल व्यक्ति की जेब में जाता है। इस बात से भी हर कोई वाकिफ है।