वीरभद्र के बाद कांग्रेस का नया चेहरा कौन?

वीरभद्र के निधन के बाद पार्टी हाईकमान के समक्ष विकट स्थिति बनी

चंबा, 9 जुलाई (विनोद): पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के निधन के साथ ही कांग्रेस ने हिमाचल में अपना चेहरा खो दिया है। ऐसे में पार्टी को अब जल्द अपना नया चेहरा घोषित करना होगा।
वीरभद्र की मृत्यु के रूप में प्रदेश की राजनीति में जो एक शुन्य की स्थिति पैदा हुई है उनकी भरपाई तो कभी नहीं हो सकती है लेकिन कांग्रेस के समक्ष पार्टी का एक नया चेहरा तलाशने की विकट स्थिति जरुर पैदा हो गई है।
वीरभद्र सिंह के निधन के साथ ही अब प्रदेश की चार विधानसभा सीटें खाली हो गई हैं। जिनके लिए उपचुनाव होंगे तो साथ ही एक संसदीय सीट मंडी पर भी उपचुनाव होने तय है। ऐसे में कांग्रेस के लिए एक साथ कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
इतना जरुर है कि अगर कांग्रेस हाईकमान दूर की सोचे तो ये उपचुनाव उसके द्वारा तलाशें जाने वाले नये चेहरे की लोकप्रियता को जांचने का अवसर हो सकता है। 
वीरभद्र सिंह के अंतिम संस्कार रस्म प्रक्रिया पूरी होने से पूर्व भले यह बात कुछ लोगों के गले न उतरे लेकिन एक बात तो तय है कि चंद दिनों के बाद प्रत्येक राजनैतिक दल व राजनीति के पंडित इस विषय पर गहन चर्चा व मंथन करने में जुट जाएंगे।
वीरभद्र सिंह 1982 के बाद कांग्रेस के लिए ऐसा चेहरा बने कि उन्होंने कई लोकसभा चुनावों में जीत दिलाने के साथ-साथ प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी को सत्ता के सिंहासन तक बिठाने में अपनी अहम भूमिका निभाई।
इसकी एक वजह यह भी थी कि वीरभद्र की लोकप्रियता के आगे पार्टी हाईकमान भी खुद को बौना पाती थी। ऐसा कई बार देखने को मिला कि कुछ विषयों को लेकर वीरभद्र सिंह व पार्टी हाईकमान एक-दूसरे के आमने सामने आ गए लेकिन हर बार हाईकमान को ही पीछे हटना पड़ा।
इसकी मुख्य वजह यह भी थी कि वीरभद्र खुद में एक ऐसा राजनीतिक संस्थान थे जिनकी प्रयोगशाला में प्रत्येक राजनीतिक परिस्थिति व दबाव से सुरक्षित निकलने का फार्मूला मौजूद था।

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उनके जाने के बाद अब कांग्रेस को पार्टी को नया चेहरा तलाशना होगा। इस सूची में मुकेश अग्निहोत्री, आशा कुमारी, हर्ष महाजन, कौल सिंह, जी.एस.बाली, सुखविंद्र सिंह सुक्खू व ठाकुर राम लाल सहित कई नाम शामिल है लेकिन पार्टी हाईकमान को यह देखना होगा कि इन चेहरों में वे चेहरा कौन  है जो पूरे हिमाचल में मान्य है।
इस पूरे मामले में कांग्रेस हाईकमान को यह भी देखना होगा कि दिल्ली की नजदीकियों वाला चेहरा कही पार्टी को दो फाड़ होने की दहलीज तक न ले जाए। यही वजह है कि अब भाजपा भी कांग्रेस पर अपनी पैनी निगाहें गड़ाए रखेगी।
यह तमाम बातें वीरभद्र के देहांत होने के साथ ही जन्मी हैं जिन पर कांग्रेस हाईकमान को बेहद गंभीरता व बारीकी के साथ चिंतन व मनन करना होगा। इसकी वजह यह है कि वीरभद्र की लोकप्रियता, राजनीतिक सूझबूझ के अलावा उनके जैसा स्वभाव हर किसी में नहीं हो सकता है।
बावजूद इसके पार्टी को ऐसा नया चेहरा तो जनता के सामने लाना होगा जो कि वीरभद्र की कमी को कुछ हद तक तो कम करने में अहम भूमिका निभा सके।
हिमाचल की राजनीति की बात करें तो यहां की राजनीति लोकप्रियता के चेहरे पर आधारित रही है। कांग्रेस पार्टी में जहां डा. यशवंत सिंह परमार व वीरभद्र सिंह इसके प्रमाण रहें तो वहीं भाजपा ने भी इसी तर्ज पर चुनाव लड़े हैं। शांता कुमार व धूमल के नाम पर भाजपा प्रदेश के चुनावों में उतरी है। इस बात को कांग्रेस पार्टी को ध्यान में रखना होगा कि विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय चेहरा की बजाए क्षेत्रीय चेहरे को प्रदेश के मतदाता अधिक अधिमान देते हैं।