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चुराह को जब है जरुरत तो कहीं भी नजर नहीं आया

चुराह मुक्ति मोर्चा का वजूद महज चुनावों तक ही सीमित
चम्बा, 14 मई(विनोद): बीते दिनों प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने अपने चुराह विधायक होने का राजधर्म निभाते हुए चुराह के हकों की बात कहते हुए डी.एस.पी.सलूणी कार्यालय व वन मंडल कार्यालय सलूणी को चुराह ले जाने की बात क्या कही कि अपने और बेगाने इस बात की काट करने में जुट गए। किसी ने मुख्यमंत्री तक को पत्र लिख दिया तो किसी ने इसे अपनी नाक का सवाल बनाते हुए अपनी ही पार्टी का नेता होते हुए सार्वजनिक रूप से इन कार्यालयों को स्थानान्त्रित न करने की बात कही डाली। इस पूरे मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि चुराह को मुक्ति दिलाने के नाम पर अस्तित्व में आए चुराह मुक्ति मोर्चा कही भी नजर नहीं आया। मजेदार बात है कि जब भी विधानसभा का बिगुल बजता है तो चुराह मुक्ति मोर्चा अपने कुएं से बाहर निकल कर टरटर लगाने शुरूकर देता है लेकिन अब जबकि न सिर्फ हंसराज को इस मोर्चे के समर्थन की आवश्यकता थी तो साथ ही अपने नाम काे सार्थक बनाने का भी उसके पास सुनेहरा मौका था लेकिन इस मोर्चे का कही भी नामों निशान तक नजर नहीं आया। इससे यह साफ पता चलता है कि महज चुनावों के दौरान खुद को चुराह का सबसे बड़ा हितैषी करार देते हुए नेताओं को डराने तक ही यह मोर्चा सीमित है और अब तो यह भी मान लेना चाहिए कि इसके नाम पर मुट्ठी भर लोग ही पर्दें के पीछे से अपना उल्लू साधने के लिए इसके नाम पर पूरा प्रपंच रचाए हुए है।
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VINOD KUMAR

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चुराह को जब है जरुरत तो कहीं भी नजर नहीं आया

Update Time : 02:16:55 pm, Friday, 14 May 2021
चुराह मुक्ति मोर्चा का वजूद महज चुनावों तक ही सीमित
चम्बा, 14 मई(विनोद): बीते दिनों प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने अपने चुराह विधायक होने का राजधर्म निभाते हुए चुराह के हकों की बात कहते हुए डी.एस.पी.सलूणी कार्यालय व वन मंडल कार्यालय सलूणी को चुराह ले जाने की बात क्या कही कि अपने और बेगाने इस बात की काट करने में जुट गए। किसी ने मुख्यमंत्री तक को पत्र लिख दिया तो किसी ने इसे अपनी नाक का सवाल बनाते हुए अपनी ही पार्टी का नेता होते हुए सार्वजनिक रूप से इन कार्यालयों को स्थानान्त्रित न करने की बात कही डाली। इस पूरे मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि चुराह को मुक्ति दिलाने के नाम पर अस्तित्व में आए चुराह मुक्ति मोर्चा कही भी नजर नहीं आया। मजेदार बात है कि जब भी विधानसभा का बिगुल बजता है तो चुराह मुक्ति मोर्चा अपने कुएं से बाहर निकल कर टरटर लगाने शुरूकर देता है लेकिन अब जबकि न सिर्फ हंसराज को इस मोर्चे के समर्थन की आवश्यकता थी तो साथ ही अपने नाम काे सार्थक बनाने का भी उसके पास सुनेहरा मौका था लेकिन इस मोर्चे का कही भी नामों निशान तक नजर नहीं आया। इससे यह साफ पता चलता है कि महज चुनावों के दौरान खुद को चुराह का सबसे बड़ा हितैषी करार देते हुए नेताओं को डराने तक ही यह मोर्चा सीमित है और अब तो यह भी मान लेना चाहिए कि इसके नाम पर मुट्ठी भर लोग ही पर्दें के पीछे से अपना उल्लू साधने के लिए इसके नाम पर पूरा प्रपंच रचाए हुए है।