आज बसंत पंचमी को किस तरह करें मां सरस्वती का पूजन

चंबा की आवाज*** विद्या व संगीत की देवी मां सरस्वती का हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। हर साल माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है। इस बार बसंत पंचमी 16 फरवरी दिन मंगलवार को है। बसंत पंचमी ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा का दिन भी है। इसलिए इसे ‘सरस्वती पूजन’ के नाम से भी जाना जाता है। इस उत्सव को मनाए जाने के पीछे क्या उद्देश्य है और सरस्वती पूजन का महत्व क्या है? इसे जानने के पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि मां सरस्वती का स्वरूप या प्रभाव क्या है?

श्रीकृष्ण के कंठ से हुईं उत्पन्न
मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है और सर्वदा शास्त्र-ज्ञान को देने वाली है। सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से अद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पार्वती, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। इनके और भी नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है। मां सरस्वती की महिमा और प्रभाव असीम है। ऋगवेद 10/125 सूक्त के आठवें मंत्र के अनुसार वाग्देवी सौम्य गुणों की दात्री और सभी देवों की रक्षिका है। सृष्टि-निर्माण भी वाग्देवी का कार्य है। वे ही सारे संसार की निर्मात्री एवं अधीश्वरी है। वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है।

बसंत पंचमी पूजा विधि
भगवती सरस्वती के पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणायाम आदि के द्वारा अपनी बाह्याभ्यन्तर शुचिता संपन्न करें। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करें। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में- ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये’ पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। इसके बाद श्रीगणेश की आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती का सादर आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करें। पूजा के समय ‘श्री हृ्रीं सरस्वत्यै स्वाहा’ इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रत्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करें। अन्त में देवी सरस्वती को आरती करके उनकी स्तुति करें।

बसंत पंचमी पूजा साम्रगी
स्तुतिगान के अलावा सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गन्ध पुष्प्म, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी (कलम) में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। माघ शुक्ल पंचमी को अनध्याय भी कहा गया है। मां सरस्वती की आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होने वाली उपचार सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती है। जैसे- दूध दही मक्खन धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, गन्ना, एवं गन्ने का रस, पका हुआ गुड़, मधु, श्वेद चंदन, श्वेत पुष्प, श्वेत परिधान, श्वेत अलंकार, खोवे का श्वेत मिष्टान, अदरक, मूली, शर्करा, सफेद धान के अक्षत, तण्डुल, शुक्ल मोदक, धृत, सैन्धवयुक्त हविष्यान्न, यवचूर्ण या गोधूमचूर्णका धृतसंयुक्त पिष्टक, पके हुए केले की फली का पिष्टक, नारियल, नारियल का जल, श्रीफल, बदरीफल, ऋतुकालोभ्दव पुष्प फल आदि।

बसंत पंचमी महत्व
ग्रंथों के मुताबिक भगवान श्रीमन्नारायाण ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था, जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। महर्षि वाल्मीकि, व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा शौनक जैसे ऋषि इनकी ही साधना से कृतार्थ हुए। भगवती सरस्वती को प्रसन्न करके उनसे अभिलषित वर प्राप्त करने के लिए विश्वविजय नामक सरस्वती कवच का वर्णन भी प्राप्त होता है। भगवती सरस्वती के इस अद्भुद विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यंश्रृंग, भरद्वाज, देवल और जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। मां सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कविकुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामीजी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्र हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं। विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है।

मां सरस्वती के व्रतोपासकों के लिए नियम
1- वेद, पुराण, रामायण, गीता आदि ग्रन्थों का आदर करना चाहिए। उन्हें देवी की वचाडमयी मूर्ति मानते हुए पवित्र स्थान पर रखना चाहिए, अपवित्र स्थान पर नहीं रखना चाहिए। अपवित्र अवस्था में स्पर्श नहीं करना चाहिए तथा अनादर से फेंकना नहीं चाहिए।
2- काष्ठफलक आदि पर ही रखना चाहिए। नियमपूर्वक प्रातःकाल उठकर देवी सरस्वती का ध्यान करना चाहिए।
3- विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से सारस्वत व्रत का अवश्य ही पालन करना चाहिए।

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