पांगी लोक संस्कृति का परिचायक जकारू के तहत स्वांग मेला मनाया

पांगी, ( इंद्रप्रकाश ): पांगी लोक संस्कृति का परिचायक जुकारु अपनी अलग पहचान रखता है। इस दिनों पांगी घाटी में जुकारू की धूम है। इसी के तहत पांगी मुख्यालय किलाड़ में स्वांग मेला धूमधाम से मनाया गया।

 

रविवार को जनजातीय घाटी पांगी ( Pangi ) के महालियत गांव से चौकी बाजार तक स्वांग की शोभायात्रा निकाली गई जिसमें स्थानीय प्रजा के लोगों के साथ साथ मेला देखने आए अन्य श्रद्धालुओं ने भी भाग लिया। पांगी का 12 दिवसीय जुकारू ( Jucaru ) आपसी भाईचारे का उत्सव है।

 

 

जुकारु मेला के पांचवें दिन से अलग अलग स्थानों पर अलग अलग नामों से मेलों का आयोजन किया जाता है। सभी लोगो अपने अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए एक दूसरे गांव जाते हैं। पकवान बनाये जाते हैं। हालकि आपसी मिलन का कार्यक्रम बैशाखी तक लगा रहता है। ज्यादातर लोग इन दिनों में ही अपनों से मिलते हैं।

 

 

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स्वांग देंती नाग के लागड़ी (चेले) को मुखोटा पहना करके बनाया जाता है। स्वांग का मुखोटा सुबह के समय चार बजे से पहले लिखकर तैयार किया जाता है। सुबह के समय छत पर आ करके चेले को मुखोटा पहना करके स्वांग बनाया जाता है। स्वांग का मुखोटा चिर, खुवानी के लकड़ी से बनाया गया है।

 

 

 

 

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इस मुखोटे को छूआ (सफेद पत्थर को पीस के रंग) बनाया जाता है मोर के पंख से मुखोटे पर चित्रकारी की जाती है। इस मुखोटे को याक के सफेद और काले रंग के बाल लगाए जाते हैं। इस मुखोटे को राक्षस के मुंह का आकार दिया जाता है। स्वांग की सजावट महालियत गांव में सुबह लागड़ी के घर में की जाती है।

 

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इसी गांव में राक्षस दम्पति को महल राणा ने इस आश्वासन के साथ बन्दी बना कर रखा है जिस दिन राणा के घर शुभ दिन आएगा आपको आजाद कर दिया जाएगा। इसके सर पर याक की पूंछ के बाल अलग अलग रंगों में सजायें जाते हैं करीब एक बजे गाजे बाजे के साथ देंती नाग के चेले खटक घान और स्वांग की शोभायात्रा निकलते हैं इस शोभायात्रा में सेकड़ों लोग भाग लेते हैं। महालियत गांव से चौकी गांव तक शोभायात्रा निकाली जाती है।

 

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